कोविड-19 महामारी : भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोरोनावायरस का प्रभाव
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कोविड-19 महामारी : भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोरोनावायरस का प्रभाव

Lifestyle tips and tricks कोविड-19 महामारी के मामले पूरे भारत में लगातार बढ़ रहे हैं, जिनकी औसत विकास दर 23% है। सरकार को डर है कि भारत इस महामारी के उस पड़ाव के करीब पहुंच रहा है, जहां से इसके पीड़ितों की संख्या में तेजी से वृद्धि होने लगती है। इसलिए जनता कर्फ्यू, देश में 21 दिन का लॉकडाउन और आवश्यक सेवाओं को छोड़कर बाकी सभी व्यवसायों को बंद करने जैसे सख्त उपाय अपनाने आवश्यक थे, ताकि कोरोनावायरस के फैलाव को नियंत्रित किया जा सके।

कोविड-19 महामारी : भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोरोनावायरस का प्रभाव

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कोविड-19 महामारी : भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोरोनावायरस का प्रभाव

 

कोविड-19 महामारी का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

कोविड-19 महामारी के मामले पूरे भारत में लगातार बढ़ रहे हैं, जिनकी औसत विकास दर 23% है। सरकार को डर है कि भारत इस महामारी के उस पड़ाव के करीब पहुंच रहा है, जहां से इसके पीड़ितों की संख्या में तेजी से वृद्धि होने लगती है। इसलिए जनता कर्फ्यू, देश में 21 दिन का लॉकडाउन और आवश्यक सेवाओं को छोड़कर बाकी सभी व्यवसायों को बंद करने जैसे सख्त उपाय अपनाने आवश्यक थे, ताकि कोरोनावायरस के फैलाव को नियंत्रित किया जा सके।

इन उपायों और कोविड-19 महामारी के आर्थिक प्रभाव सामान्य रूप से व्यापक और दूरगामी होने वाले हैं।

आइए जानें कि यह महामारी भारतीय अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित कर सकती है।

 

1. जीडीपी विकास दर घटने की आशंका है

टोक्यो स्थित वित्तीय सेवा समूह नोमुरा के अनुसार कोरोनावायरस के परिणामस्वरूप शटडाउन होने से लगभग 4.5% का प्रत्यक्ष उत्पादन नुकसान हो सकता है। इंडिया सीमेंट्स, बीएचईएल, ऑटो निर्माता कंपनियों जैसे कि हीरो मोटोकॉर्प और मारुति सुजुकी और एमटेक एवं कैस्ट्रोल जैसी बड़ी कंपनियों ने अस्थायी बंद की घोषणा की हुई है। यहां तक ​​कि यूनिलीवर और डाबर इंडिया जैसी फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स (एफएमसीजी) कंपनियों ने भी अपने संयंत्र बंद किए हुए हैं और बस रोजाना इस्तेमाल होने वाली जरूरी चीजों का निर्माण ही जारी है। बार्कलेज ने इस लॉकडाउन के कारण भारत में जीडीपी के लगभग 4.5% के नुकसान की भविष्यवाणी की है। कोरोनावायरस से सबसे ज्यादा पीड़ित राज्य महाराष्ट्र और केरल जीडीपी में लगभग 19% को योगदान करते हैं। विशेषज्ञों ने भविष्यवाणी की है कि जीडीपी की वृद्धि दर 5% की पिछली अनुमानित दर की तुलना में 4% तक गिर सकती है।

 

2. निवेशकों का भरोसा डगमगा गया है और बाजार में निवेश घट रहा है

कोरोनोवायरस के निरंतर बढ़ते मामलों से उपजी घबराहट और अनिश्चितता तथा इसके परिणामस्वरूप कोविड-19 के फैलाव को रोकने के लिए देश भर में लॉकडाउन को लागू किया गया है, जिससे निफ्टी और सेंसेक्स में पिछले कई वर्षों की सबसे बड़ी गिरावट देखी गई। शेयर बाजार पिछले महीने की तुलना में लगभग 37% तक गिर गए हैं।

कोरोनावायरस के फैलने से पहले भारतीय बाजार दुनिया भर के वित्तीय संस्थानों की सकारात्मक भविष्यवाणियों के साथ मंदी से उबर रहा था, लेकिन कोविड-19 महामारी के प्रकोप के बाद बाजार एक बार फिर अनिश्चितताओं के भंवर में फंस गया है। निवेशकों में घबराहट फैल गई और उन्होंने बाजार से अपने पैसे निकालने शुरू कर दिए। इससे पूरे सेक्टर में शेयर की कीमतों में गिरावट आई है। हालांकि जैसे ही आईटी शेयरों के दाम इस उम्मीद में ऊंचे हुए कि मुश्किल में फंसी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए सरकार द्वारा घोषित वित्तीय पैकेज से अच्छे नतीजे मिलेंगे, सेंसेक्स और निफ्टी, दोनों में वृद्धि दर्ज की गई।

 

3. सभी व्यवसाय अनिश्चित भविष्य से जूझते दिख रहे हैं

गैर-जरूरी चीजों का उत्पादन करने वाले व्यवसायों को कोविड-19 महामारी के बाद गंभीर नुकसान झेलना पड़ सकता है। मॉल, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, थिएटर और रेस्तरां इत्यादि एक महीने से भी अधिक समय तक बंद रह सकते हैं, जिससे इनकी कमाई पर काफी प्रभाव पड़ेगा। छोटे व्यवसायों और कमजोर फर्मों पर भी कोरोनावायरस का असर बहुत अधिक होने की संभावना है, जो नकदी संकट का सामना करने के लिए बाध्य होंगे। यद्यपि आवश्यक सेवाएं जारी हैं, लेकिन बाधित आपूर्ति श्रंखला और आपूर्ति में कमी के कारण गैर-जरूरी चीजों के विनिर्माण क्षेत्र को भारी नुकसान पहुंचने की प्रबल आशंका है।

इसके अलावा विभिन्न गतिविधियों पर प्रतिबंध लगने के कारण किसानों की मुश्किलें बढ़ना भी तय है, क्योंकि लॉकडाउन में किन गतिविधियों को छूट है, इस बारे में कुछ स्पष्ट ही नहीं है। इससे कृषि जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र के भी बुरी तरह से प्रभावित होने की प्रबल संभावना है।

 

4. मांग और आपूर्ति में बड़ा अंतर पैदा होगा

बाधित आपूर्ति श्रंखला संसाधनों की कमी का कारण बन सकती है। नकदी की कमी छोटे व्यवसायों की मुसीबतों को और बढ़ा सकती है। यह बदले में उत्पादन को बाधित करेगा, जिसके परिणामस्वरूप आपूर्ति में देरी और कमी आएगी। हालांकि वस्तुओं और अत्यावश्यक चीजों की मांग समान रहने की उम्मीद है और इसमें वृद्धि भी हो सकती है। इससे मांग और आपूर्ति में भारी अंतर पैदा होगा।

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